Saturday, March 9, 2024

ग़ज़ल

 जब से तुम बिछुड़ी हो मेरे जिंदगी से 
मेरी मंजिल का कोई ठौर ही नहीं रहा।

जब से हम दोनों की राहें अलग हुई  
मेरे जीवन में तो मधुमास ही नहीं रहा।  

मैं तो सदा राहों में आँखें बिछाता रहा 
तुम्हें तो राहों में चलना पसंद ही नहीं रहा। 

मैं तो सदा तुम्हारी आँखों में देखता रहा  
मुझे आईना में कभी विश्वाश ही नहीं रहा। 

कहते हैं शहरों में सब कुछ मिलता है    
मगर तुम्हारे जैसा प्यार तो कहीं नहीं रहा।   

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