शीतल समीर बही सरसर,
महक उठी सारी अमराई
कूकी कोयल पेड़ों पर।
वन-उपवन फूल खिले
पगलाया हरसिंगार,
आम्र मंजरियाँ लगी पुलकने
झूम उठा फिर से कचनार।
तितली-भृंग लगे बहकने
खिलने लगे फूल पलाश,
अमलतास हँसने लगा
उड़ी पतंग आकाश।
पंख कल्पना को लगे
बिरहा जिया जलाय,
पीहू-पीहू बोले पपीहारा
गौरी का मन सुलगाय।
बहुत खूब।
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