गाय ने बछड़ा वहाँ दिया था
बछडा कृष्णा को प्यारा लगा
साथ में उसके खेलने लगा
रोज सवेरे जल्दी उठता
दौड़ पास बछड़े के जाता
प्यार से उसको गले लगाता
कभी हाथ से उसे सहलाता
कृष्णा की छुट्टिया खत्म हो गई
वापिस आने की टिकट बन गई
जाकर झट नानी से बोला
नट-खट ओ भोला-भाला
बछड़े की भी टिकट बना दो
प्लेन में मेरे साथ बिठा दो
मैं इसको ले कर जाऊँगा
साथ में इसके मैं खेलूँगा
नानी ने उसको समझाया
माँ -बेटे का प्यार बताया
माँ से अलग बेटे को करना
बड़ा पाप है ध्यान में रखना
कृष्णा को झट समझ आ गया
वापिस अपने घर को आ गया।
एक दिन नानी को फ़ोन मिलाया
बछडे से बात करावो उन्हें बताया
नानी बछड़ा बनकर बोली
प्यारी मीठी वाणी बोली
अच्छे-अच्छे काम करो
दुनिया में तुम नाम करो
पढ़ -लिख कर विद्वान बनो
पाकर ज्ञान महान बनो
करो बड़ो का आदर तुम
प्यार सभी का पावो तुम।
कोलकत्ता
17 मार्च 2009
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
17 मार्च 2009
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )