पुरवाई की पवन चली, अब वारिद आएंगे,
बिजली के संग गरजेंगे, अम्बर में छायेंगे,
प्यास बुझेगी धरती की, अमृत बरसाएंगे,
सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे।
बागों में सावन के झूले, फिर से डालेंगे,
फूल खिलेंगे बागों में, पपीहारा गायेंगे,
प्यास बुझेगी चातक की, मयूर नाचेंगे,
सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे।
इन्द्रधनुष के सातों रंग, अम्बर में छाएंगे,
हल चलेंगे खेतों में, नव अंकुर निकलेंगे,
सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे।
बच्चे नाचेंगे पानी में, किलकारी मारेंगे,
टर्र - टर्राते मेंढक, पोखर में उछलेंगे,
ताल-तलैया, बावड़ी, सब भर जाएंगे,
सावन के मेघा आए, बरसात लाएंगे।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )