Monday, April 25, 2022

हमने शमा को जल-जल पिघलते देखा है

हम छत पर खुले आकाश नीचे सोते थे,
हमने तारों भरी रात का नजारा देखा है।
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हम छुप कर प्यार भरे खत लिखते थे,
हमने उनमें विरह के दर्द को देखा है।
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हम बड़ों के सामने कभी बोलते नहीं थे,
हमने घूंघट की टिचकारी को सुना है।
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हम समद्र के किनारे नगें पांव घूमेते थे,
हमने सागर की लहरों का संगीत सुना है।
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हम एक दूजे की सांसों में समा जाते थे,
हमने रातरानी में गंध को समाते देखा है।
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हम मिलने के इन्तजार में बेताब रहते थे,
हमने शमा को जल-जल पिघलते देखा है


Saturday, April 23, 2022

लालच की झाड़ियाँ उग आई

जिसके मन में लालच की झाड़ियाँ उग आई,
वह परिवार के सुख को भला समझेगा क्या ?

जिसकी अक्ल स्वार्थ की तिजोरी में बंद हो, 
वह भाइयों के प्यार को कभी समझेगा क्या ?

बातों के गड़े मुर्दे उखाड़ कर मिलेगा क्या, 
आपस में बैर ही तो बढ़ेगा प्यार रहेगा क्या ? 

बाप के सामने भी जो बेटा बोलने लग गया,
वह भाईयों और परिवार को समझेगा क्या ?

जो जिंदगी में दूसरों के ही दोष देखता रहा,
वह कभी अपने गिरेबान में भी झांकेगा क्या ?

जिसमें अहम् और घमंड का नशा भरा हो, 
वह अपनी गलती को स्वीकार करेगा क्या ?

रिश्ते सारे खोखले हो रहें पैसों के लालच में, 
बचपन में बाँट - बाँट खाते याद करोगे क्या ? 









Monday, April 4, 2022

वृद्धाश्रम में

बेटे के जन्म पर 
माँ-बाप बाँटते हैं मिठाइयाँ 
ख़ुशी की खबर देने के लिये। 

मंदिरों में 
भगवान से करते हैं प्रार्थना 
बेटे की लम्बी उम्र के लिये। 

बीमार पड़ने पर 
रातों जागते रहते हैं 
बेटे को दवा देने के लिये। 

सब तकलीफें 
सहकर खुशियाँ ढूँढते हैं 
बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिये। 

एक-एक पाई जोड़ 
बेटे को विदेश भेजते हैं 
अच्छी पढाई करने के लिये। 

पढ़-लिख बेटा 
लग जाता हैं वहाँ नौकरी 
कर लेता है किसी से शादी 
घर बसाने के लिये। 

फिर माँ - बाप 
तरसते ही रह जाते हैं 
बेटे-बहु का मुँह देखने के लिये। 

बुढ़ापा में ढूँढते है 
कोई अच्छा वृद्धाश्रम
अपना बुढ़ापा काटने के लिये। 

Sunday, April 3, 2022

आत्मीयता

मेरे भाषण के बाद 
मुख्य अध्यापिका ने अपना 
धन्यवाद भाषण दिया 

थोड़ी देर में ही 
सामने लगी टेबलों पर 
नाश्ते की प्लेटें सजा दी गई

गाँव वाले जो नीचे 
दरी पर बैठे हुए थे
उनके सामने भी नाश्ता 
लगा दिया गया  

मैं उठा और 
प्लेट लेकर गाँव वालों के 
बगल में जाकर बैठ गया 

मुझे नीचे बैठा देख 
सभी मेरे पास चले आये और 
मुझ से हाथ मिलाने लगे

प्लेटों से मिठाई उठा 
अपने हाथों से खिलाने लगे 
उनकी आत्मीयता देख 
मैं भाव-विभोर हो गया 

मैं उनसे बहुत देर तक 
बातें करता रहा 
परिवार, खेती, बच्चों की 
जानकारी लेता रहा 
कुछ नई बातें बताता रहा 

सभी प्रेमातुर होकर मेरे माथे 
पीठ पर हाथ फिराने लगे 
कहने लगे आज तक किसी ने 
इस तरह पास बैठ कर 
इतनी बातें नहीं की 

तुम तो अपने ही हो 
गांव आते रहा करो 
अच्छा लगता है 
कोई आकर हमारे से 
इस तरह की बातें करे

हमारे शहरों में आज 
धरती से जुड़े ऐसे 
गाँव - गिराँव के सीधे-सादे 
भोले मन के लोग कहाँ मिलते हैं ?






 

Friday, April 1, 2022

बीच राह में

मैं तुम्हें ढूँढता -ढूँढता 
चाँद तक पहुँच गया,
लेकिन तुम मुझे वहाँ 
नहीं मिली

तुम्हारे पाँवों के निशान 
देखते - देखते मैं 
मंगल ग्रह तक पहुँच गया 
लेकिन तुम वहाँ भी नहीं मिली

मैंने जा कर सितारों से पूछा- 
उन्होंने बताया कि 
तुम बहुत दूर निकल गई हो 

मैंने सितारों से कहा कि 
वे तुम्हें खबर कर दे 
मैं यहाँ इन्तजार कर रहा हूँ 

मैं इतनी दूर चला आया 
अब थोड़ी दूर 
तुम चली आओ। 

बिलकुल वैसे ही 
जैसे हम तुम
पहली बार मिले थे 
दोनों तरफ से आकर 
बीच राह में।