रेशमी कीड़ा
सुरक्षित भविष्य
के लिए अपने जिस्म
के चारों और एक जाल
बुनता हैं- कूकून
मानव
उस कीड़े को
गर्म पानी में डाल
कर उसका वध करता है
फिर उसके कूकून को नोच
कर अपने लिए वस्त्र बनाता है
रेशमी वस्त्र
पहनने वालों ने
क्या कभी उस कीड़े की
शहादत को भी याद किया है।
कोलकत्ता
३० जनवरी, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
३० जनवरी, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
bahut hi sundar rachanaa...thanks sir
ReplyDeleteधन्यवाद पुनियाजी
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