आओ बंधु !
घर से बाहर निकलो
कब तक कमरे में बैठे टी. वी.
देखते रहोगे ?
ईश्वर ने हमें
मानव तन दिया है
क्या इस से कोई भलाई का
काम नहीं करोगे ?
देखो कितना सुहाना मौसम है
ठंडी-ठंडी बयार चल रही है
आओ निकलो बाहर
आज कोई अच्छा काम कर आएं
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाएं
किसी भूखे को दो रोटी खिलाएं
और नहीं तो किसी बीमार को
थोड़ी दवा ही पीला आएं
देखो ! दुःखो का अंत तो
एक दिन सभी का होना है
हर अँधेरी रात के बाद
सूर्य को निकलना है
हमें तो इश्वर ने एक मौका दिया है
क्यों नहीं हम उसका लाभ उठाये
हमें तो करना भी उतना ही है
जितना सामर्थ्य से होता है
आओ निकलो बाहर
चलो मेरे साथ
करते है आज मिल कर
एक भलाई का काम।
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]