Monday, June 24, 2019

थोड़ी मृत्यु मुझे भी आई है,

सूर्य का प्रकाश
कमरे से लौट रहा है
शाम का धुंधलका
अपने पांव पसार रहा है

मैं अकेला कमरे में
लौट आया हूँ
तुम्हारे संग बिताए
लम्हों को ढूंढ रहा हूँ

तुम्हें याद करते ही
आँखों से अश्रु छलक आते हैं
तुम्हारी एक झलक पाने को
मेरे नयन तरस जाते हैं

तुम्हारी यादों की नदी
मेरे अंदर बहुत गहरी बहती है
मधुर स्मृतियों की लहरें
मेरे विरह के घावों को
सहलाती रहती है

मैं तुम्हारी यादों के छोरों को
अपने संग जोड़ता रहता हूँ
रात के सन्नाटे में
टुकड़े - टुकड़े सोता हूँ

मेरी जिंदगी की सारी खुशियां
तुम्हारे संग चली गई
तुम्हारी मृत्यु के साथ
थोड़ी मृत्यु मुझे भी आई है।



( यह कविता "कुछ अनकही। ....... "नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है।  )

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