ताल
कानाताल
पौड़ी गढ़वाल का
सुन्दर, शांत इलाका
छोटा -सा बाजार।
दो दिन से लगातार
हो रहा है हिमपात
लगता है जैसे काश के
फूलों को बिछा दिया
गया है चहुँ ओर
पहाड़ों पर छितरे हैं
दूर-दूर तक मकान
छतों पर पड़ी हिम
चमक रही है धूप में
देवदार के पेड़
क्रिसमस ट्री बन गए हैं
झर रही है हिम रुई की तरह
हवा के हल्के झोंके से
हिम से ढके पहाड़
चमक रहे हैं सूर्योदय
के समय सोने की तरह
पर्यटकों का मन मोह रहे हैं
बर्फीली वादियों के नज़ारे
चाँदी से गुलज़ार हो गए
देवभूमि के पर्वत
प्रकृति ने एक सफ़ेद चादर
चांदनी की तरह ओढ़ रखी है
जैसे चाँद अपनी चांदनी
को छोड़ गया हो
चारों ओर बिखरा पड़ा है
प्रकृत्ति का अनुपम सौन्दर्य
मन को मोह लेती है यहॉं की
कलात्मक सृजनता।
( कानाताल में रहते हुए चार फ़रवरी, २०२१ )
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )