बाजरी की रोटी
दूध भरा कटोरा
कहीं खो गया है
गांव शहर चला गया है।
चौपाल की बैठक
चिलमों का धुँवा
कहीं खो गया है
गांव शहर चला गया है।
गौरी की चितवन
गबरू का बांकापन
कहीं खो गया है
गांव शहर चला गया है।
होली की घीनड़
गणगौर का मेला
कहीं खो गया है
गांव शहर चला गया है।
बनीठनी पनिहारिन
ग्वाले का अलगोजा
कहीं खो गया है
गांव शहर चला गया है।
आँगन में मांडना
सावन में झूला
कहीं खो गया है
गांव शहर चला गया है।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )