Sunday, March 28, 2021

गांव बदल गया है

बाजरी की रोटी
      दूध भरा कटोरा 
            कहीं खो गया है
                  गांव शहर चला गया है। 

चौपाल की बैठक 
       चिलमों का धुँवा 
             कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 

गौरी की चितवन 
       गबरू का बांकापन 
              कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 

होली की घीनड़ 
      गणगौर का मेला 
            कहीं खो गया है 
                   गांव शहर चला गया है। 

बनीठनी पनिहारिन 
       ग्वाले का अलगोजा 
               कहीं खो गया है 
                      गांव शहर चला गया है। 
आँगन में मांडना 
       सावन में झूला 
             कहीं खो गया है 
                     गांव शहर चला गया है। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )















6 comments:

  1. सच में वो गाँव कहीं खो गये हैं और उनके मिलने की कोई उम्मीद भी अब नहीं | भावपूर्ण और मार्मिक रचना भागीरथ जी | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद रेणु जी आपका।

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  2. बहुत ही सुंदर सारगर्भित सृजन,सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी आपका।

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  3. गाँव के प्रति मन की संवेदनाएँ बहुत खूबसूरती से प्रकट की हैं ।सुंदर भाव

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  4. बहुत-बहुत धन्यवाद संगीता स्वरुप जी आपका।

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