Thursday, December 29, 2022

व्याकुल आँखें

व्याकुल आँखें
आज भी देख रही है 
राह तुम्हारी 

बिस्तर में 
हर करवट निकल रही है 
आह तुम्हारी 

व्यथित मन 
आज भी चाह रहा है 
छांव तुम्हारी 

यादों के सागर में 
बिन पतवार चल रही है 
नाव तुम्हारी 

जीवन की राह में 
हर ठोकर पर याद आ रही है 
बाँह तुम्हारी। 


7 comments:

  1. यादों के सागर में
    बिन पतवार चल रही है
    नाव तुम्हारी
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर ।

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  2. स्वागत आप सभी का।

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  3. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति भागीरथ जी।विकल हृदय की भावना को जीवंत लिखा है आपने।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।🙏

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  4. कृपया ब्याकुल को व्याकुल कर लें 🙏

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  5. बेहतरीन अभिव्यक्ति ..... भाव पूर्ण ।

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  6. आप सभी का स्वागत और धन्यवाद।

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