Friday, March 31, 2023

बोली में मिठास है रामराम की

मेरे पास न पहाड़ों के गीत 
न घाटियों और दर्रों के 
न नदियों और नाविकों के 
न सागर और मछुवारों के 
मैं तो मरुधरा का रहने वाला हूँ 
थोड़े से सुर है अलगोजों के
सांसों में महक है मिट्टी की 
थोड़ी सी छांव है खेजड़ी की 
बोली में मिठास है रामराम की।  



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