Saturday, September 28, 2024

चौखट

जुल्म  सह  कर भी  जो सदा चुप रहे  
ऐसी  बेबसी भी फिर किस काम की। 

जिंदगी भर दुःखों को अकेला सहता रहे 
रिश्तों की बैसाखी फिर किस काम की।

ग़मों में  डूब  कर जो जीवन  जीता रहे 
यादों की जुगाली फिर किस काम की। 

बुढ़ापे में माता - पिता संग जो नहीं रहे 
ऐसी औलाद भी  फिर  किस काम की। 

जीवन में हमसफ़र का जो साथ न रहे 
तन्हा जिंदगी भी  फिर किस काम की। 


Wednesday, September 4, 2024

तुम्हें भेजूंगा लिख कर

गंगा के कलकल स्वर को  
कानों में भर कर 

हिमालय की सुंदरता को  
आँखों में सजा कर 

रजनीगंधा की महक को 
साँसों में भर कर 

प्यारी मदहोशी यादों को 
दिल में संजो कर 

भेजूंगा एक कविता को 
तुम्हें लिख कर।