जुल्म सह कर भी जो सदा चुप रहे
ऐसी बेबसी भी फिर किस काम की।
जिंदगी भर दुःखों को अकेला सहता रहे
रिश्तों की बैसाखी फिर किस काम की।
ग़मों में डूब कर जो जीवन जीता रहे
यादों की जुगाली फिर किस काम की।
बुढ़ापे में माता - पिता संग जो नहीं रहे
ऐसी औलाद भी फिर किस काम की।
जीवन में हमसफ़र का जो साथ न रहे
तन्हा जिंदगी भी फिर किस काम की।
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