बिना हमसफ़र जीवन, सूना- सूना लगता है
जीने का नाटक भी, कितना झूठा लगता है।
जीवन है तो सहना और रहना भी पड़ता है
बिन हमराही तन्हाई को, सहना भी पड़ता है।
याद आते हैं वो लम्हे, जो साथ-साथ गुजरे थे
उन लम्हों में जाने कितने, इंद्रधनुष उभरे थे।
अगर तुम आओ, तो लगाऊं बाहों का बंधन
झूम उठे तन-मन मेरा, और सांस बने चंदन।
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