शान्तम् सुखाय
Monday, April 14, 2025
चांदनी रात में
चांदनी रात में
जब कोई तारा आकाश से
टूट कर निचे आता है
तो मुझे लगता है
निकला है कोई आँसू
तुम्हारी आँख से
लेकिन वह
नहीं पहुंचता
मेरे पास
खो जाता है कहीं
क्षितिज में
और मैं इन्तजार
करते-करते
चला जाता हूँ
निंद्रा के आगोश में।
जीवन चक्र
माटी से बना दीपक
रात भर जलता है
रौशनी देता है
अँधियारा हरता है
सबको राह दिखाता है
और एक दिन टूट कर
माटी में मिल जाता है।
देह दीपक की
यही कहानी है
बचपन, जवानी और
बुढ़ापे की
तेज धारा में बहता
आखिर टूट कर
एक दिन माटी में
मिल जाता है।
Saturday, April 12, 2025
अब आकर बदरा बरसो रे
धरती प्यासी, जीवन प्यासा,
ताल, तलैया सब ही प्यासा।
सारे पंछी रो-रो कर पुकारे,
अब आकर बदरा बरसो रे।
प्यासा पपीहा पिहू पिहू बोले,
चातक प्यासा मुँह को खोले।
धरती की प्यास बुझादो रे,
अब आकर बदरा बरसो रे।
खेतों -आँगन में तुम बरसो,
धरती लहराए उतना बरसो।
झर-झर की झड़ी लगादो रे,
अब आकर बदरा बरसो रे।
स्वागत करेंगे नर और नारी,
महकादो तुम फसल हमारी।
आकाश में मृदंग बजादो रे
अब आकर बदरा बरसो रे।
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