धरती प्यासी, जीवन प्यासा,
ताल, तलैया सब ही प्यासा।
सारे पंछी रो-रो कर पुकारे,
अब आकर बदरा बरसो रे।
प्यासा पपीहा पिहू पिहू बोले,
चातक प्यासा मुँह को खोले।
धरती की प्यास बुझादो रे,
अब आकर बदरा बरसो रे।
खेतों -आँगन में तुम बरसो,
धरती लहराए उतना बरसो।
झर-झर की झड़ी लगादो रे,
अब आकर बदरा बरसो रे।
स्वागत करेंगे नर और नारी,
महकादो तुम फसल हमारी।
आकाश में मृदंग बजादो रे
अब आकर बदरा बरसो रे।
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