स्वर्गाश्रम में राम झूला और लक्ष्मण झूला के मध्य, नदी के किनारे के पास, काली कमली वाले की बनी हुई कुटियों में अनेक साधू-महात्मा निवास करते हैं। मैं उन आश्रमों में पहले भी कईं बार भ्रमण कर चुका हूँ। आज भी मैं घूमते हुए, मैं एक आश्रम में चला गया। स्वामी जी विद्वान और पहुंचे हुए महात्मा है। उनमें एक आकर्षण शक्ति है। मैंने प्रणाम कर के उनसे निवेदन किया कि आज आप गंगा के बारे में कुछ चर्चा कीजिये।
स्वामी जी बोले - गंगा निश्चय ही समस्त ज्ञान का स्रोत है। लोको का उद्धार करने वाली गंगा वास्तव में विष्णु का ही स्वरुप है। इसके दर्शन मात्र से मनुष्य सब द्वन्दों से मुक्त हो जाता है। गंगा युगों -युगों से त्राण देती आ रही है। मुक्ति का प्रतीक है। महाभक्ति का महाप्रतिक है। जो सूर्य की किरणों से तप्त गंगा जल पिता है, वह सब योनियों से छूट कर हरिलोक को जाता है। मनुष्य की हड्डियाँ जब तक गंगा जल में रहती है, उतने समय तक वह मानव स्वर्ग लोक में आनन्द करता है। मनुस्मृति सर्वधर्ममयी है, भगवान् विष्णु सर्वदेवमय है. उसी तरह गंगा सर्वतीर्थमयी है। दक्षिण में काँची समुद्र तट पर मायल्ल्पुरम में गंगा की महिमा का पूरा ब्यौरा पहाड़ पर उत्कीर्ण है।
गंगा का जन्म कैसे भी हुआ हो, परन्तु, मनुष्य ने पहली बस्ती इसी के तट पर बसाई। सभ्यता का कोमल पौधा यहीं फूटा। पामीर के पठारों में वरुण की उपासना करने वाली, सुनहरें बालों वाली गौर वर्ण, आर्य जाति यहीं बसी। महर्षि वाल्मीकि का आश्रम गंगा तट पर ही था। जहां रामायण का संगीत रचा गया। सीता माता का पतिव्रत्य धर्म की परीक्षा भी गंगा तट पर ही हुई थी. गंगा तट पर ही मत्स्यगंधा ने महर्षि व्यास को जन्म दिया। भीष्म पितामह गंगा के ही पुत्र थे। द्रोपदी का स्वंयवर भी गंगा तट पर ही हुवा था। कृष्ण की बाँसुरी का स्वर लेकर सतत् नृत्य करने वाली यमुना भी गंगा में ही समा गई। महाभारत के युद्ध की योजना गंगा तट पर ही बनी और धर्म की विजय पताका भी गंगा तट पर ही फहराई। गंगा के अंचल में ही आयुर्वेद का जन्म हुआ। ऋग्वेद की रचना गंगा किनारे हुई।
गुप्त वंश का उदय गंगा तट पर ही हुआ। महाभाष्यकार पातंजलि गंगा के कछार पर ही रहे। चन्द्रगुप्त के परक्रम का स्थान गंगा के तट पर ही है। कालिदास के शब्द गंगा के तट पर ही गूँजें। राष्ट्रकूट वंश के ध्रुव का राज्य चिन्ह गंगा थी। नये- नये शास्त्र और स्मृतियों की रचना गंगा तट पर हुई। प्रतिभा पुंज शंकर ने दिग्विजय के पश्चात गंगा तट पर ही भक्ति प्राप्त की थी। महानगरी कोलकता गंगा किनारे ही बसी है। गंगा किनारे ही पश्चिम से आकर एक नई संस्कृति ने सबसे पहले अपना प्रभाव स्थापित किया। गंगा के तट पर ही विक्रम शिला का अद्वितीय विद्यापीठ है।
जहां गंगा नहीं पहुंची, वहाँ बहुत सी सरिताएं स्वयं आकर गंगा में विलीन हो गई। नेपाल की सरयू, कृष्ण की यमुना, रतिदेव की चम्बल, गजग्राह की सोम, नेपाल की कोसी, गंडक और तिब्बत से आने वाली ब्रह्मपुत्र सभी को इसने अपने में समेट लिया। पतित पावनि गंगा, कितने नाम बदलती है अपने - अलकनंदा, जान्हवी,भागीरथी, पद्मा, मेघना, हुगली और अंत में सुंदरवन के स्थान पर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।
मैंने पूछा स्वामी जी गंगा का मूल मन्त्र क्या है ?
स्वामी जी बोले --
ऊँ नमो गंगायै विश्वरुपणियै
नारायण्यै नमो नमः।
यह गंगा जी का मूल मंत्र है।
स्वामी जी के संध्या वंदन का समय हो गया था, मैं स्वामी जी के चरणों में नमन कर गीता भवन लौट आया।