Sunday, July 13, 2025

मणिचक्र घुमाने दो

शी जिनपिंग 
चीन के महामहिम !

तुमने लाखों 
तिब्बती बच्चो को 
परिवार से अलग कर 
छात्रावासों में 
बंधक बना दिया। 

तुम तिब्बत की 
हजारों वर्ष पुरानी 
संस्कृति को 
मिटाना चाहते हो। 

उन बच्चों को  
चीनी भाषा और 
चीनी रीति रिवाज़ 
सीखाना चाहते हो। 

इससे क्या मिलेगा 
शी जिनपिंग तुम्हें ?

चंद सांसों की जिन्दगी 
लेकर आये हो,
एक दिन सब कुछ 
छोड़ चले जाओगे। 

क्यों लाखों माँओं से 
उनके प्यारे बच्चोंको 
अलग कर रहे हो ?

क्यों उनके धर्म और 
संस्कृति को 
मिटाने पर तुले हो।  

सब को शान्ति से जीने दो
सबको अपने धर्म का 
पालन करने दो। 
 
तुम अपने देश में 
चैन की बंशी बजाओ 
उनको अपने देश में 
मणिचक्र घुमाने दो। 












Saturday, July 12, 2025

समय बदल रहा है

समय बदल रहा है 
अब लाल बत्ती पर 
कोई बच्चा नहीं आता 
शीशा साफ़ करने और 
पैसे के लिए 
गिड़गिड़ाने। 

समय बदल रहा है 
अब नहीं आती 
कोई कमजोर औरत 
दूधकट्टु नंगा बच्चा 
गोद में लिए 
भीख मांगने। 

समय बदल रहा है 
अब नहीं मिलता  
कोई काला-कलूटा
दुर्बल बच्चा 
खाने के लिए 
पैसा मांगते। 

समय बदल रहा है 
अब नहीं मिलता 
कूड़े के ढेर पर बैठा 
कचरे को बीनता 
कोई भूखा बच्चा। 





माध्यम

प्रसिद्धि आती है 
भाषा के साथ 
शब्दों के माध्यम से। 

प्रेम आता है 
निःशब्द 
आँखों के माध्यम से। 

भाषा सुन 
आँखें होती चकित, 
आँखों की भाषा से 
मन होता चकित। 




Thursday, July 10, 2025

प्रेम तुम्हारा शाप बन गया

अँधियारी सूनी रातों में 
जब याद तुम्हारी आती है, 
स्मृतियाँ बनती सहारा 
प्यार से थपकी देती है।

तुम्हारी विरह व्यथा को 
मैं हर पल भोग रहा हूँ, 
ओझल होती प्रतीक्षा में 
अश्रु धारा बहा रहा हूँ। 

भूले - भटके ख़ुशी कोई 
जब जीवन राग छेड़ती है,
तभी तुम्हारी यादें आकर 
आँखों से ढुलक जाती है। 

हँसना, खिलाना, मुस्काना 
सब कुछ तुम्हारे संग गया, 
विरह की अग्नि जलने लगी 
प्रेम तुम्हारा शाप बन गया। 



Saturday, June 28, 2025

मरुधरा

आन बान शान वाली 
मरुधरा धरती  प्यारी,
सौंधी खुशबू माटी में
इसकी महिमा न्यारी।

मस्ती भरा जीवन यहाँ
मोठ - बाजरी खावण,
दूध-दही हुवै मोकळा 
सांगर, केर लगावण।

तेजा, गोगा,राम देवरा  
इन सब  के लगते मेले, 
दीवाली में दीप जलावे  
मिलजुल के होली खेले। 

गर्मियों में आग बरसती 
हाड़ फोड़ सर्दी पड़ती, 
लेकिन कर्मठ लोग यहाँ 
मस्ती से गाड़ी चलती। 



 





Wednesday, June 11, 2025

आनन्दायनमः

स्वर्गाश्रम में राम झूला और लक्ष्मण झूला के मध्य, नदी के किनारे के पास, काली कमली वाले की बनी हुई कुटियों में अनेक साधू-महात्मा निवास करते हैं। मैं उन आश्रमों में पहले भी कईं बार भ्रमण कर चुका हूँ। आज भी मैं घूमते हुए, मैं एक आश्रम में चला गया। स्वामी जी विद्वान और पहुंचे हुए महात्मा है। उनमें एक आकर्षण शक्ति है। मैंने प्रणाम कर के उनसे निवेदन किया कि आज आप गंगा के बारे में कुछ चर्चा कीजिये।  

स्वामी जी बोले - गंगा निश्चय ही समस्त ज्ञान का स्रोत है। लोको का उद्धार करने वाली गंगा वास्तव में विष्णु का ही स्वरुप है। इसके दर्शन मात्र से मनुष्य सब द्वन्दों से मुक्त हो जाता है। गंगा युगों -युगों से त्राण देती आ रही है। मुक्ति का प्रतीक है। महाभक्ति का महाप्रतिक है। जो सूर्य की किरणों से तप्त गंगा जल पिता है, वह सब योनियों से छूट कर हरिलोक को जाता है। मनुष्य की हड्डियाँ जब तक गंगा जल में रहती है, उतने समय तक वह मानव स्वर्ग लोक में आनन्द करता है। मनुस्मृति सर्वधर्ममयी है, भगवान् विष्णु सर्वदेवमय है. उसी तरह गंगा सर्वतीर्थमयी है। दक्षिण में  काँची समुद्र तट पर मायल्ल्पुरम में गंगा की महिमा का पूरा ब्यौरा पहाड़ पर उत्कीर्ण है।   

गंगा का जन्म कैसे भी हुआ हो, परन्तु, मनुष्य ने पहली बस्ती इसी के तट पर बसाई।  सभ्यता का कोमल पौधा यहीं फूटा। पामीर के पठारों में वरुण की उपासना करने वाली, सुनहरें बालों वाली गौर वर्ण, आर्य जाति यहीं बसी। महर्षि वाल्मीकि का आश्रम गंगा तट पर ही था। जहां रामायण का संगीत रचा गया। सीता माता का पतिव्रत्य धर्म की परीक्षा भी गंगा तट पर ही हुई थी. गंगा तट पर ही मत्स्यगंधा ने महर्षि व्यास को जन्म दिया।  भीष्म पितामह गंगा के ही पुत्र थे। द्रोपदी का स्वंयवर भी गंगा तट पर ही हुवा था। कृष्ण की बाँसुरी का स्वर लेकर सतत् नृत्य करने वाली यमुना भी गंगा में ही समा गई। महाभारत के युद्ध की योजना गंगा तट पर ही बनी और धर्म की विजय पताका भी गंगा तट पर ही फहराई। गंगा के अंचल में ही आयुर्वेद का जन्म हुआ। ऋग्वेद की रचना गंगा किनारे हुई। 

गुप्त वंश का उदय गंगा तट पर ही हुआ। महाभाष्यकार पातंजलि गंगा के कछार पर ही रहे। चन्द्रगुप्त के परक्रम का स्थान गंगा के तट  पर ही है। कालिदास के शब्द गंगा के तट पर ही गूँजें। राष्ट्रकूट वंश के ध्रुव का राज्य चिन्ह गंगा थी। नये- नये शास्त्र और स्मृतियों की रचना गंगा तट पर हुई। प्रतिभा पुंज शंकर ने दिग्विजय के पश्चात गंगा तट पर ही भक्ति प्राप्त की थी।  महानगरी कोलकता गंगा किनारे ही बसी है। गंगा किनारे ही पश्चिम से आकर एक नई संस्कृति ने सबसे पहले अपना प्रभाव स्थापित किया।  गंगा के तट पर ही विक्रम शिला का अद्वितीय विद्यापीठ है। 

जहां गंगा नहीं पहुंची, वहाँ बहुत सी सरिताएं स्वयं आकर गंगा में विलीन हो गई। नेपाल की सरयू, कृष्ण की यमुना,  रतिदेव की चम्बल, गजग्राह की सोम, नेपाल की कोसी, गंडक और तिब्बत से आने वाली ब्रह्मपुत्र सभी को इसने अपने में समेट लिया। पतित पावनि गंगा, कितने नाम बदलती है अपने - अलकनंदा, जान्हवी,भागीरथी, पद्मा, मेघना, हुगली और अंत में सुंदरवन के स्थान पर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। 

मैंने पूछा स्वामी जी गंगा का मूल मन्त्र क्या है ?
स्वामी जी बोले --

ऊँ नमो गंगायै विश्वरुपणियै 
नारायण्यै नमो नमः। 
यह गंगा जी का मूल मंत्र है। 
स्वामी जी के संध्या वंदन का समय हो गया था, मैं स्वामी जी के चरणों में नमन कर गीता भवन लौट आया।  

Saturday, May 31, 2025

स्वर्गाश्रम

गोमुख 
गंगा का स्रोत 
पृथ्वी का स्वर्ग है 

गंगोत्री
पावन है, पवित्र है 
मुक्ति का स्वरूप है 

स्वर्गाश्रम 
साधु संतों की भूमि
ध्यान, भक्ति का स्थल है 

गंगा का तट 
हिमालय की गोद 
यहाँ दिव्य कम्पन है 

गंगा में 
बहने वाले पत्थर 
यहाँ कविता सुनाता है 

इस दिब्य 
अनूठे स्वरुप को 
जो हृदयस्थ कर लेता है 

उसकी हर सांस से 
एक ही ध्वनि-प्रतिध्वनि
निकलती है 

जय गंगा मैया 
तेरी सदा जय हो
जय हो।