Saturday, April 23, 2011

मजा ही कुछ और है.



सूर्योदय तक
बिस्तर में पड़े रहने से तो
खुली हवा में टहलने का
मजा ही कुछ और है

टी.वी. पर क्रिकेट मैच
 देख कर तालियाँ बजाने से तो
नुक्कड़ पर क्रिकेट मेच खेलने का
मजा ही कुछ और है


आई पोड पर
चेटिंग कर समय बिताने से तो
कुछ सर्जनात्मक कार्य करने का
मजा ही कुछ और है 

बच्चे को
डांट कर रुलाने से तो
रोते बच्चे को हँसाने का
मजा ही कुछ और है 

बुराई का बदला
बुराई कर देने से तो
भलाई कर  देने का
मजा ही कुछ और है

झूटी शान ओ शोकत में
धन बर्बाद करने से तो
किसी गरीब के आँसू पोंछने का
मजा ही कुछ और है। 

कोलकत्ता
२३ अप्रैल,२०११

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Saturday, April 9, 2011

जापान में सुनामी



पहले भूकंप आया
भू-गर्भ थरथरा गया

अपने गए, घर गया
सारे सपने मिटा गया 

पीछे सुनामी आया,
लहरों का जलजला लाया

हर तरफ कहर बरपा गया
गांव और शहरों को लील गया

फौलादी परमाणु रिएक्टर ढह गया
हवा के कण कण में जहर घुल गया

पूरे  जापान हिला गया
  रामजी ये क्या कर दिया  ?



कोलकत्ता
९ अप्रैल,  २०११
(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Thursday, April 7, 2011

बुढापा रो सियाळो (राजस्थानी कविता)


सियाळा री रातां
काली पीली रातां

सी पङै  मोकळो
काँई करै डोकरो

हाड- हाड काँप ज्यावै 
 नसां में लोही जम ज्यावै 

थर थर कांपतो
गुदङा ने दबातो रात काटे

चिड़कल्यां री चीं- चीं  सुण
डरतो डरतो मुंडो बार काढ़े

अगुणा में उजास देख
जी मांय जी आवै

 सियाळा री रातां
        दोरी घणीं जावै।     

  कोलकत्ता                                                                                                                                             ७ अप्रेल, २o११                                                                                                                                                                                                            
 (यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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