माटी के दीपक
प्रवाहित करते और
देखते रहते कि किसका
दीपक आगे निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
जब हम सागर से
सीपिया चुन-चुन कर
इकट्ठी करते और
देखते रहते कि किसकी
सीपी से मोती निकलता है
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
जब हम झील के किनारे बैठे
बादलो की रिमझिम फुहारों में
भीगते रहते और तुम कहती
ये पहाड़ कितने अपने लगते हैं
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
जब हम चाँदनी रात में
छत पर सोते और आसमान का
नजारा देखते रहते
टूटते तारों को देख कर तुम कहती
तारों का टूटना मुझे अच्छा नहीं लगता
क्या वह लमहा तुम्हे याद है ?
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]