आकाश के
दिलकश नजारों को
प्रदुषण ने छीन लिया
रातों की
नींद को ट्रकों की
चिल्लपौं ने छीन लिया
फलों का
स्वाद फर्टिलाईजर
ने छीन लिया
बच्चों के
बचपन को होमवर्क
ने छीन लिया
परिवार की
एकता को महंगाई
ने छीन लिया
दादी की
कहानियों को टी वी
ने छीन लिया
पक्षियों के
कलरव को टावरों
ने छीन लिया
ने छीन लिया
आपसी प्यार को
अहम् की संकीर्णता
ने छीन लिया
ने छीन लिया
दुनिया के अमन
चैन को आतंकवाद
ने छीन लिया
ने छीन लिया
देर सवेर सही
लेकिन एक दिन
यह बात समझ में आयेगी।
जीतनी जल्दी
समझ में आएगी
मानवता बच जायेगी।
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
यह बात समझ में आयेगी।
जीतनी जल्दी
समझ में आएगी
मानवता बच जायेगी।
[ यह कविता "कुछ अनकही***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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