नीम के पेड़ की
शीतल बयार
शुद्ध हवा
पंछियों का बसेरा
गिलहरियों का फुदकना
चिड़ियों का चहचहाना
लल्लन का पालना
छुटकी का झुला
कोयल का घोंसला
सब मेरे देखते-देखते
अतित बन गया
पेड़ धराशाही हो गया
कुल्हाड़ी के लगते ही
पेड़ कांप उठा था
पत्ती-पत्ती सिहर उठी थी
आरे के चलते ही पेड़ में
दर्द का दरिया फुनगी से
जड़ो तक बह गया था
हरे-भरे पेड़ का
अंत हो गया था।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]