Friday, December 27, 2013

बंद करो अब शैतानी






एक बरस की हुई आयशा
        अब करती शैतानी है
अगड़म-बगड़म भाषा बोले 
     हमें समझ नहीं आती है। 

 पानी उसको अच्छा लगता
           बाथटब में नहाती है 
 फिर चाहे कितना बहलाओ  
         बाहर नहीं निकलती है।  

      बड़े शौक से झूला झूले 
          निचे नहीं उतरती है
    पिज़ा,मैगी और पकौड़ी
            बड़े चाव से खाती है। 

     छुपा-छुपी खेल खेलना 
      उसको प्यारा लगता है 
    उसकी इन अदाओं पर
    सारा घर खुश हो जाता है। 

 सबकी प्यारी राजदुलारी
    करती अपनी मनमानी
      मम्मी आँख दिखा कहती      
       बंद करो अब शैतानी।


२८ नवम्बर २०१३ को प्यारी आयशा एक साल ki हो गयी। 

Friday, December 13, 2013

सावण आयो रे (राजस्थानी)

घणो सौवणो सावण लागै
सौणा तीज तिवांर रे
उमट कळायण बरसै बादळ
मन हरसावै रे
सावण आयो रे

ऊँचा डाळै हिंडो घाल्यो
सखियाँ हिंडो हिंड रे
घूँघट मांही पळका मारै
लड़ली लुमाँ झुमाँ रे
सावण आयो रे

सोन चिड़कल्यां  करै कई किळोळा
गीत पपीहा गावै रे
पीऊ-पीऊ कर बोले मोरियो
छतरी ताणे रे
सावण आयो रे

फर-फर करती उड़े चुनड़ी 
चले पवन पुरवाई रे  
झिरमिर-झिरमिर मैहा बरसे 
गौरी मूमल गावै रे 
सावण आयो रे
          
मैह मोकळो अबकी बरस्यो
जबर जमानो हुसी रे
हळिया ने हाथा में पकड़्यां
छेलौ तेजो गावै रे
सावण आयो रे

कर सौलह सिणगार गोरड़ी
भातो लेयर चाळी रे
ऊँचा बैठो सायबां
प्रीत करे मनवार रे
सावण आयो रे।



[ यह कविता "एक नया सफर" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

म्हारो गाँव (राजस्थानी)


भायळा सागे गुवाड़ में
गेड्या दड़ी खेळता
चाँद के सैचन्नण चांनणै
लुक मिंचणी खेळता

भूख लागती जणा 
कांदो रोटी खावंता 
ऊपर स्यूँ भर बाटको
छाछ-राबड़ी पीवंता 

पौशाळ में पाटी बड़ता स्यूं
बारखड़ी लिखता
छुट्टी हुयां स्यूं पेली सगळा
पाड़ा बोलता

संतरे वाली फाँक्या
सगळा बाँट" र खांवता  
दूध री गिलास मलाई
घाळ" र पींवता 

जाँवण्या भरी रेंवती
दूध अर दही स्यूं
पौल भरी रेंवती  
काकड़ी र मतीरा स्यूं

गोबर रै गारा स्यूं लिपता
घर का आंगणा
होळी-दियाळी मांडता
गेरू-हिरमच रा मांडणा। 

सियाळा में पड़ती ठंड
जणा सुहाती तावड़ी
थेपड़यां थापण आंवती
मांगीड़ै री डावड़ी।

गोबर का गारा स्यूं लीपता
घर का आंगणा
होळी-दिवाळी मांडता
गेरू-हिरमच का मांडणा।



 [  यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गयी है।  ]





Sunday, December 1, 2013

पुल पर जड़े सैंकड़ो ताले



पिट्सबर्ग (अमेरिका ) सिन्ले पार्क ब्रिज का लम्बा पुल... पुल पर का यह दृश्य...सैंकड़ो ताले लटक रहे है।  बहुत समय से देख रहा हूँ।  जब भी घूमने के लिए निकलता हूँ, इस पुल को पार करते -करते विचार मन में आने लगते है।  क्या सचमुच यूँ पुल पर अपने नाम का ताला जड़ कर चाभी पानी के हवाले कर के विश्वस्त हुए लोग जिंदगी भर साथ रहेंगे। क्या आज भी सचमुच उनकी मान्यता ने उन्हें कभी न ख़त्म होने वाला साथ-- उपहार स्वरुप दिया होगा--- या जीवन की विडम्बनाओं से जूझते हुए कहीं अलग थलग सी कोई कहानी होगी उनकी... कौन जाने!
 
बहुत प्यारा सा कांसेप्ट है, ताले पर अपना नाम अपने प्रिय के नाम के साथ लिख कर यूँ पुल पर टांक दिया जाए और चाभी हमेशा के लिए बहती धारा के हवाले कर दी जाय।  फिर न कभी मिलेगी चाबी और न कभी खुलेंगे ताले, न कभी जुदा होंगे दो लोग...! काश ऐसा ही आसान होता जीवन का यह खेल। ताले चाभी के खेल सा सरल होता जीवन...