Saturday, June 28, 2014

मेरा लिखा सार्थक हो जाता है

वह शब्दों मे लिखे

रूपकों और अलंकारों को 
भले ही ना समझे 
लेकिन मेरा लिखा 
जब वह पढ़ती है 
उसकी आँखें चौड़ी हो जाती है 
माथे पर गर्व,
आँखों में प्रेम और 
चेहरे पर मुस्कराहट फ़ैल जाती है 
मुझे सबसे बड़ी दाद
उसी से मिल जाती है 
मेरा लिखा सार्थक हो जाता है।  

आया देख बसंत को

मौसम ने
जाती हुयी सर्दी के हाथों 
केशरिया फूलों से लिख भेजा
निमंत्रण पत्र बसंत को

गुनगुनी धूप ने भी
चुपके से पढ़ लिया खत
उतर आई धरती पर 
आया देख बसंत को 

कोयल बागों में कूक उठी
महुए की डाली मचल उठी 
बासंती बयार बहने लगी 

आया देख बसंत को 

टेसू के फूल खिल उठे 
आमों में बौर मचल उठे 
सहस उमंग फूल उठी 
आया देख बसंत को 

खेतों में सरसों गमक उठी 
पेड़ों पर कोंपलें खिल उठी 
मनुहारों का मन मचल उठा
आया देख बसंत को 

प्यार का मृदंग बजने लगा 
सजनी से मीत मिलने लगा 
शामें सुहानी होने लगी
आया देख बसंत को। 


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )