मौसम ने
जाती हुयी सर्दी के हाथों
केशरिया फूलों से लिख भेजा
निमंत्रण पत्र बसंत को
गुनगुनी धूप ने भी
चुपके से पढ़ लिया खत
उतर आई धरती पर
आया देख बसंत को
कोयल बागों में कूक उठी
महुए की डाली मचल उठी
बासंती बयार बहने लगी
आया देख बसंत को
टेसू के फूल खिल उठे
आमों में बौर मचल उठे
सहस उमंग फूल उठी
आया देख बसंत को
खेतों में सरसों गमक उठी
पेड़ों पर कोंपलें खिल उठी
मनुहारों का मन मचल उठा
आया देख बसंत को
प्यार का मृदंग बजने लगा
सजनी से मीत मिलने लगा
शामें सुहानी होने लगी
आया देख बसंत को।
जाती हुयी सर्दी के हाथों
केशरिया फूलों से लिख भेजा
निमंत्रण पत्र बसंत को
गुनगुनी धूप ने भी
चुपके से पढ़ लिया खत
उतर आई धरती पर
आया देख बसंत को
कोयल बागों में कूक उठी
महुए की डाली मचल उठी
बासंती बयार बहने लगी
आया देख बसंत को
टेसू के फूल खिल उठे
आमों में बौर मचल उठे
सहस उमंग फूल उठी
आया देख बसंत को
खेतों में सरसों गमक उठी
पेड़ों पर कोंपलें खिल उठी
मनुहारों का मन मचल उठा
आया देख बसंत को
प्यार का मृदंग बजने लगा
सजनी से मीत मिलने लगा
शामें सुहानी होने लगी
आया देख बसंत को।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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