पलकों में यादें तरसाती रही रात भर
नयनों में आस ललसाती रही रात भर
विरह में मन तड़पता रहा रात भर
विरह में मन तड़पता रहा रात भर
यादों में करवटें बदलता रहा रात भर।
राहों में पलकें बिछाता रहा रात भर
टूटते ख़्वाबो को सजाता रहा रात भर
दर्द भरे नग्में गुनगुनाता रहा रात भर
आरजू का दिया जलाता रहा रात भर।
आसमान में तारे गिनता रहा रात भर
बिखरे अरमान समेटता रहा रात भर
तन्हाई के गीत गुनगुनाता रहा रात भर।
मिलन का इन्तजार करता रहा रात भर
टूटती सांसो को संभालता रहा रात भर
यादों से दिल को बहलाता रहा रात भर
सिर निचे तकिया भीगता रहा रात भर।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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