Tuesday, October 25, 2016

गोळ-मटोळ रोटी (राजस्थानी कविता)

चूल्हा स्यु उठ रियो है धुँओं
थेपड़या नें सुलगा रही है माँ
बाजरी री रोटी अर 
फोफलियाँ रो साग बणासी माँ 

आँख्यां हुय राखी ह लाल 
झर रियो है पाणी घूँघट मांय 
ओसण री है बाजरी रो आटो 
लकड़ी री काठड़ी मांय 

दोन्यु हथेलियाँ रे बीच
थेपड़र बणारी है रोटी
आँगल्या रा निशाण स्यूं
बणसी गोळ-मटोळ रोटी 

टाबरिया खाय रोटी
ज्यासी पढ़बा नै
भाभी ले ज्यासी भातो
जिमावण हाळी नै

बाबो रोटी खाय सौसी
झूंपड़ा मांय लम्बी खूंटी ताण नै 
बाजरे री रोटी दौपारी ताईं
कौनी आण देव भूख ने। 



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