फूलों से काँवड़ को, सजाई रे काँवड़िया
गंगा जी का जल भर, चले रे काँवड़िया
मार्ग दुर्गम नंगे पाँव, दौड़े रे काँवड़िया
भोले का दर्शन करने, जाये रे काँवड़िया
बम बम बोले रे काँवड़िया।
भाँग घोट भोले को, चढ़ाए रे काँवड़िया
राहे-डगर मस्ती संग, झूमें रे काँवड़िया
तन-मन में उमंग भर, सोहे रे काँवड़िया
दर्शन का सतभाव, निभाये रे काँवड़िया
बम बम बोले रे काँवड़िया।
धूप -छाँव चिंता नहीं, करे रे काँवड़िया
दुर्गम राह सुगम लगे, नाचे रे काँवड़िया
राहे-सफर टेन्टों में, ठहरे रे काँवड़िया
भंडारे में राम प्रसाद पाये रे काँवड़िया
बम बम बोले रे काँवड़िया।
छोटे-बड़े एक रंग, रंगे रे काँवड़िया
ऊंच -नीच भाव तज, मोहे रे काँवड़िया
भोले को मन्दिर मांय, पूजे रे काँवड़िया
गंगा जल शंकर के,चढ़ाये रे काँवड़िया
बम बम बोले रे काँवड़िया।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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