तुम्हारा स्नेह स्पर्श पाकर
मन में प्यार का दीप जलता
हैत का सागर हिलोरें लेता
अब वह स्नेह स्पर्श नहीं है मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
जब-जब तुम मुस्कुराती
अधरों पर प्यार का गीत उभरता
सावन कजरी गाने लगता
अब वह मादक मुस्कान नहीं है
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
तुम्हारे तन की उन्मादक गंध
मेरे गीतों में मादकता भरती
दिल में प्यार के फूल खिलाती
अब वह उन्मादक गंध नहीं है
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
तुम्हारे नयनों की छवि देख
कजरारे बदरा पर गीत उमड़ते
होठों पर झूलों वाले गीत मचलते
अब वह पलकों की छांव नहीं है
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
तुम्हारे पायल के स्वर से
भंवरों के गुंजन सा गीत निकलता
सावन श्यामल धन बन छा जाता
अब वह पायल का संगीत नहीं है
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं है।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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