Monday, January 23, 2017

जीवन बे-राग री

झाँझर नैया
डाँड़ें टूटना
राहे सफर
अकेले चलना
साथ छूटा, राह भुला, मुश्किल हुई  मंजिल री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

तनहा रहना
जुदाई सहना
घुट-घुट जी
टूट-टूट बिखरना 
उदासी छाई, आँखे भर आई, मिटा अनुराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया,  जीवन बेराग री।

निष्प्राण जीवन
गमों को सहना
विरह के आँसूं
अरमां बिखरना
साज टूटा, स्वर रूठा, अब गीत बना बेराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

चिर वियोग
जीवन में सहना
व्याकुल ह्रदय
यादों में रहना
ख़्वाब आया, दीदार हुवा, सपना प्यारा टुटा री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Wednesday, January 18, 2017

कथनी और करनी

मैं पढ़ता रहा
समाजवाद, मार्क्सवाद
और प्रजातंत्रवाद पर लिखी पुस्तकें
और तुम खिलाती रही भिखारियों को,
गायों को और कुतो को रोज रोटी।

मैं सुनता रहा पर्यावरण पर
लंबे-चौड़े भाषण और
तुम पिलाती रही तुलसी को
बड़ को और पीपल को रोज पानी।

मैं चर्चाएं करता रहा
टालस्टाय, रस्किन और
गाँधी के श्रम की महता पर
और तुम करती रही सुबह से
शाम तक घर का सारा काम।

मैं सेमिनारों में सुनाता रहा
पशु-पक्षियों के अधिकारों के बारे में
और तुम रोज सवेरे छत पर
देती रही कबूतरों को, चिड़ियों को
और मोरो को दाना-पानी।

मैं सुनता रहा
उपदेशो और भाषणों को
और तुम रोज पढ़ाती रही
निर्धन बच्चों को
देती रही उन्हें खाना
कपड़े और दवाइयाँ।

तुमने मुझे दिखा दिया
दुनिया कथनी से नहीं
करनी से बदलती है।

काम कर्मठ हाथ करते हैं
थोथले विचारों से
दुनिया नहीं बदलती है।