आज की तारीख
सिर ताने खड़ी है मेरे सामने
जब तुम आस्ट्रेलिया के
समुद्री नजारों को देखने गए
आज क्यों छोड़ आये
क्यों नहीं साथ लाए उसे
चीन की दीवार दिखाने ?
मेरे लिए कदम बढ़ाना
मुश्किल हो गया
मन में इस तरह के भाव
पहले भी कईं बार आ चुके हैं।
अठाइस अप्रेल दो हजार
सतरह -शुक्रवार
मैं चीन की धरती पर।
सिर ताने खड़ी है मेरे सामने
चीन की विशालतम दिवार
फुसफुसा रही है वो
कुछ कहने को मुझे।
मैं पास गया
टूटे-फूटे पत्थरों से
आवाज आई
अकेले आये हो
कहाँ है तुम्हारी जीवन संगिनी
क्यों नहीं लाये साथ उसे ?
क्यों नहीं लाये साथ उसे ?
जब तुम आस्ट्रेलिया के
समुद्री नजारों को देखने गए
जब तुम स्वीट्जरलैण्ड की
मनोरम वादियाँ देखने गए
मनोरम वादियाँ देखने गए
जब वेनिस की ठण्डी हवा खाने गए
जब ग्रेट बैरीयर रीफ देखने गए
हर समय वो तुम्हारे साथ रही।
हर समय वो तुम्हारे साथ रही।
आज क्यों छोड़ आये
क्यों नहीं साथ लाए उसे
चीन की दीवार दिखाने ?
मेरे लिए कदम बढ़ाना
मुश्किल हो गया
मन में इस तरह के भाव
पहले भी कईं बार आ चुके हैं।
चाहे वो गोवा के समुद्र तट हो
या दुबई की गर्म रेत,
जहां भी मैं अकेला गया
जहां भी मैं अकेला गया
मेरे मन को हर जगह
यह सुनाई पड़ा
मैं भारी कदमों से
आगे बढ़ता हूँ
इस कसक के साथ कि
काश! हम दोनों पहले ही
साथ - साथ आए होते।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
मैं भारी कदमों से
आगे बढ़ता हूँ
इस कसक के साथ कि
काश! हम दोनों पहले ही
साथ - साथ आए होते।
[ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]
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