कल शाम
अचानक धर्मपत्नी का
स्वर्गवास हो गया
देह को रात भर
बर्फ की सिल्लियों पर
रखा गया
तुलसी का बीड़ा रख
अगरबत्तियों को
जलाया गया
रात भर प्रभु कीर्तन हुवा
सुबह होते ही
उठाने का काम शुरू हुवा
नहला कर
नई साड़ी पहनाई गई
माँग में सिंदूर भरा गया
अर्थी को फूलों से सजा
रामनामी चद्दर को
ओढ़ाया गया
राम नाम सत्य का
उच्चारण करते हुए अर्थी को
श्मशान घाट लाया गया
देह को चिता पर रख
घी, नारियल, चन्दन
आदि लगाया गया
बेटे ने मुखाग्नि देकर
अंतिम संस्कार की
रश्म को पूरा किया
यह सब कुछ मेरी
नज़रों के सामने हुवा
मैं मूक दर्शक बन रह गया
पल भर में मेरे
मधुमासी जीवन का
अन्त हो गया।
अचानक धर्मपत्नी का
स्वर्गवास हो गया
देह को रात भर
बर्फ की सिल्लियों पर
रखा गया
तुलसी का बीड़ा रख
अगरबत्तियों को
जलाया गया
रात भर प्रभु कीर्तन हुवा
सुबह होते ही
उठाने का काम शुरू हुवा
नहला कर
नई साड़ी पहनाई गई
माँग में सिंदूर भरा गया
अर्थी को फूलों से सजा
रामनामी चद्दर को
ओढ़ाया गया
राम नाम सत्य का
उच्चारण करते हुए अर्थी को
श्मशान घाट लाया गया
देह को चिता पर रख
घी, नारियल, चन्दन
आदि लगाया गया
बेटे ने मुखाग्नि देकर
अंतिम संस्कार की
रश्म को पूरा किया
यह सब कुछ मेरी
नज़रों के सामने हुवा
मैं मूक दर्शक बन रह गया
पल भर में मेरे
मधुमासी जीवन का
अन्त हो गया।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में छप गई है। )