Thursday, June 28, 2018

मधुमासी जीवन का अन्त

कल शाम
अचानक धर्मपत्नी का
स्वर्गवास हो गया

देह को रात भर
बर्फ की सिल्लियों पर
रखा गया

तुलसी का बीड़ा रख
अगरबत्तियों को
जलाया गया

रात भर प्रभु कीर्तन  हुवा
सुबह होते ही
उठाने का काम शुरू हुवा

नहला कर
नई साड़ी पहनाई गई
माँग में सिंदूर भरा गया

अर्थी को फूलों से सजा
रामनामी चद्दर को
ओढ़ाया गया

राम नाम सत्य का
उच्चारण करते हुए अर्थी को
श्मशान घाट लाया गया

देह को चिता पर रख
घी, नारियल, चन्दन
आदि लगाया गया

बेटे ने मुखाग्नि देकर
अंतिम संस्कार की
रश्म को पूरा किया

यह सब कुछ मेरी
नज़रों के सामने हुवा
मैं मूक दर्शक बन रह गया

पल भर में मेरे
मधुमासी जीवन का
अन्त हो गया।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में छप गई है। )

धूप-छांव

सर्दियों में मैंने सोचा
हमारा घर धूप में
होना चाहिए

गर्मियों में मैंने सोचा
हमारा घर छांव में
होना चाहिए

फिर सोचा पहले
घर तो बनना चाहिए
घर होगा तो धूप -छांव
भी आ जाएगी

बेटा होगा तो
बहु भी आ जाएगी
दिन उगेगा तो
रात भी ढल जाएगी।




Monday, June 25, 2018

मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा

तुम चिंता मत करो
मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा

मैं तुम्हारा दुनियाँ की
सबसे अच्छी अस्पताल में
इलाज कराऊंगा
लेकिन मरने नहीं दूंगा

मैं अपनी सांसों में से
कुछ सांसें तुम्हें दूंगा
अपने सपनों में से
कुछ सपने तुम्हें दूंगा
लेकिन मरने नहीं दूंगा

तुम घबराना मत
मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा
जरुरत पड़ी तो मैं तुम्हें
यमराज से भी छिन लूंगा
लेकिन मरने नहीं दूंगा

मुझे यह भी पता है कि
मेरे ज़िंदा रहने के लिए
तुम्हारा ज़िंदा रहना
कितना जरूरी है मेरे लिए।




( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )














Saturday, June 23, 2018

मेरी यादों में गांव

गांव में
गोबर-मिटटी से पुते घर
घास -फूस की झोंपड़ियाँ
अब नजर नहीं आती

पनघट पर
बनी-ठनी पनिहारिनों की
हंसी-ठिठोली
अब नजर नहीं आती

चौपाल पर
चिलम- हुक्का के संग
लम्बी-चौड़ी बैठकें
अब नजर नहीं आती

पायल संग चलती कुदाली
बैलगाड़ी पर
पुरे परिवार की सवारी
अब नजर नहीं आती

सांझ-सवेरे
गायों को दुहना
चक्की से आटा पीसना
अब नजर नहीं आता

खेतो में
चौपायों का चरना
अलगोजो को बजना
अब नजर नहीं आता

लस्सी,गुड़ के साथ
बाजरे की रोटी खाना
प्याज के साथ राबड़ी पीना
अब नजर नहीं आता।




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