झारखण्ड केआदिवासी इलाके मेंभूख से परिवार की मौत।बिहार मेंकड़ाके की ठण्ड सेसात लोगों की मौत।चिकित्सा केअभाव में नवजात कीअसामयिक मौत।समाचार पत्र मेंइन खबरों का शीर्षकसही नहीं लिखा गया था।परिवार कीमौत भूख से नहींगरीबी से हुई थी।उनके पासअनाज खरीदने के लिएपैसे नहीं थे।सात लोगोंकी मौत ठण्ड से नहींगरीबी से हुई थी।उनके पासकपड़े खरीदने के लिएपैसे नहीं थे।नवजात की मौतबीमारी से नहींगरीबी से हुई थी।उनके पासदवा खरीदने के लिएपैसे नहीं थे।यदि हम चाहते हैं किइस तरह की घटनाएंनहीं घटे तो हमेंगरीबी को मिटाना होगा।रुपये किलोचावल बांटने यामुफ्त में साइकिलदेने से काम नहीं चलेगा।हर हाथ कोकाम देना होगादेश में काम करने कावातावरण बनाना होगा।घर बैठे पैसे दे करमुफ्त में अनाज बांट करवोट बैंक तो बनाया जा सकता हैमगर गरीबी नहीं मिटाई जा सकती।अकर्मण्य बनाने से अच्छा हैउन्हें कर्म करने के लिएप्रेरित किया जायहाथों को काम देकरगरीबी को मिटाया जाय।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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