छुट्टियों के बाद
मेरा कॉलेज में पढ़ने के लिए जाना
तुम्हारी आँखों में बादलों का उमड़ना
आज भी याद आता है।
मेरे कॉलेज से लौटने पर
दरवाजे पर आँखों का टकराना
दिलों में प्यार का उमड़ना
आज भी याद आता है।
घर की छत पर
लम्बे बालों को संवारना
अप्रतिम सौन्दर्य कोबिखेरना
आज भी याद आता है।
हिमालय की वादियों में
एक हाथ में तुम्हारा हाथ पकड़ना
दूसरा बादलो के कंधे पर रख घूमना
आज भी याद आता है।
गीता भवन के घाट पर
गंगा की लहरों संग खेलना
नाव में बैठ पानी को उछालना
आज भी याद आता है।
सागर के किनारे
नंगे पांव लहरों के संग दौड़ना
ढेर सारी सीपियाँ चुन कर लाना
आज भी याद आता है।
पार्क में घूमते हुए
हलके से उंगलियों को दबाना
मेरा अल्हड़ आँखों में झांकना
आज भी याद आता है।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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