कल शाम, छत पर सोया मैं गुनगुना रहा था।
एक तारा टूटा, सोचा शायद तुम आ रही हो।।
रिमझिम बरसात, मैं खिड़की से देख रहा था।
बिजली चमकी, सोचा शायद तुम आ रही हो।।
सुबह का समय, मैं विक्टोरिया में घूम रहा था।
खुशबू का झोंका, सोचा शायद तुम आ रही हो।।
होली का त्योंहार, मैं तुम्हारी यादों में खोया था।
गुलाबी रंग उड़ा, सोचा शायद तुम आ रही हो।।
हरसिंगार के निचे, मैं कविता गुनगुना रहा था।
फूल महकने लगे, सोचा शायद तुम आ रही हो।।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31- 3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4386 दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बुलंद करेगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
आभार आपका।
Deleteहरसिंगार के निचे, मैं कविता गुनगुना रहा था।
ReplyDeleteफूल महकने लगे, सोचा शायद तुम आ रही हो।।
बहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमन
स्वागत आपका।
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