Wednesday, March 30, 2022

सोचा शायद तुम आ रही हो

कल शाम, छत पर सोया मैं गुनगुना रहा था।  
एक तारा टूटा, सोचा शायद तुम आ रही हो।। 

रिमझिम बरसात, मैं खिड़की से देख रहा था। 
बिजली चमकी, सोचा शायद तुम आ रही हो। 

सुबह का समय, मैं विक्टोरिया में घूम रहा था।  
खुशबू का झोंका, सोचा शायद तुम आ रही हो। 

होली का त्योंहार, मैं तुम्हारी यादों में खोया था।  
गुलाबी रंग उड़ा,  सोचा शायद तुम आ रही हो। 

हरसिंगार के निचे,  मैं कविता गुनगुना रहा था। 
फूल महकने लगे, सोचा शायद तुम आ रही हो। 



4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31- 3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4386 दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बुलंद करेगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  2. हरसिंगार के निचे, मैं कविता गुनगुना रहा था।
    फूल महकने लगे, सोचा शायद तुम आ रही हो।।

    बहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमन

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