Thursday, March 3, 2022

हाल-ए-दिल किसी को सुनाता भी नहीं

मैं अपने विछोह का दर्द कैसे बयाँ करू?
ऐसे स्वर और व्यंजन वर्णमाला में भी नहीं। 
मेरे दर्द को जो सदा के लिए दूर कर सके, 
ऐसा शिक्षक भी किसी पाठशाला में नहीं। 

मैं जहाँ गया सदा तुम्हें साथ लेकर गया, 
मैंने तो कभी तुम्हें अकेला छोड़ा भी नहीं।  
मेरे समर्पण में  क्या कोई कमी रह गई ?
जो तुम मुझे अपने साथ लेकर गयी नहीं। 

तुम्हारे बिना जीवन में पतझड़ छा जायेगा,
कैसे बसन्त खिलेगा तुमने सोचा भी नहीं। 
जीवन का अधूरा गीत कैसे सम्पूर्ण होगा,
प्यार की थाह को तुमने समझा भी नहीं। 

कैसे मन के भावों को तुम तक पहुँचाऊँ?
सन्देश वाहक मेघदूतों  की प्रथा रही नहीं। 
बगैर तुम्हारे तन्हा जिंदगी में दर्द तो बहुत है,
पर हाल-ए-दिल किसी को सुनाता भी नहीं।



3 comments:

  1. किसी अपने से बिछडने का गम हूबहू उतार दिया है रचना में।
    दर्द और बस दर्द।

    पधारें- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा

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  2. रोहितास जी आपने सही पहचाना। आभार आपका।

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  3. कैसे मन के भावों को तुम तक पहुँचाऊँ?
    सन्देश वाहक मेघदूतों की प्रथा रही नहीं।
    बगैर तुम्हारे तन्हा जिंदगी में दर्द तो बहुत है,
    पर हाल-ए-दिल किसी को सुनाता भी नहीं।
    जानेवाले के भी वश में कहाँ कुछ होता है !!!

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