पपीहा बोले वर्षा ऋतु आई
यादें तुम्हारी घटा बन छाई
तुम मेघा बन कर मुझ पर
रिमझिम प्यार लुटा दो ना
तुम एक बार आ जाओ ना।
बिना तुम्हारे रह न सकूंगा
प्रीति रस में बह न सकूंगा
तुम चूनर ओढ़ सितारों की
शुभ चूड़ियां खनका दो ना
तुम एक बार आ जाओ ना।
मैं तड़पूँ ज्यों धन में बिजुरी
या जैसे हो जल बिन मछरी
तुम अपने तन की खुशबू से
मेरा तन-मन महका दो ना
तुम एक बार आ जाओ ना।
जीवन को पतझड़ ने घेरा
गम का बढ़ने लगा अँधेरा
तुम मेरे सुने मन मन्दिर में
कोई सुन्दर राग छेड़ दो ना
तुम एक बार आ जाओ ना।
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