तन्हाई का जीवन मेरा
केवल यादों का सम्बल
बंधा हुवा हूँ बंधन में
इसे मिटा कर
क्या पाओगे
जीर्ण-जर्जर मेरी काया
धूमिल हुई जीवन आशा
व्यथाएँ देती दस्तक
अब दर्द देकर
क्या पाओगे
सपने सारे बिखरे मेरे
आलिंगन भी रूठ गए
देखा मैंने प्रेम सभी का
और दिखा कर
क्या पाओगे
सम्बोधन की सीमा टूटी
प्यार की बुनियाद रूठी
चौखट हाहाकार करती
बेघर कर
क्या पाओगे
हँस कर जीवन जीने का
मैंने एक संकल्प लिया
अंतर की पीड़ा सहता
मुझे रुला कर
क्या पाओगे ?
पीड़ा से धधकते मन की अनकही व्यथा एक भावपूर्ण रचना में ढल गई! इस दर्द को देने वाले कहाँ इन प्रश्नों के उत्तर दे पाते हैं! बधाई स्वीकार करें भागीरथ जी🙏
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी।
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