पत्थर वाली पाटी पर हम बारहखड़ियाँ लिखते थे
छुट्टी की बेला में सब खड़े होकर पहाड़े बोलते थे
सारे साथी बिछुड़ गये मिलना अब मुश्किल होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
मेरे सपने में आकर गांव आज भी मुझे बुलाता है
सारी सारी रात गांव की गलियों में मुझे घूमाता है
गांव का कोई साथी मुझको भी याद करता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
होली पर चंग की धाप आज भी खूब लगती होगी
सावन की तीज पर गोरियाँ घूमर भी घालती होगी
झूमझूम बादल गांव में आज भी खूब बरसता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
गुवाड़ में चिलम की बैठक आज भी जमती होगी
गौधूली बेला मंदिर में झालर आज भी बजती होगी
गांव का खेत आज भी चौमासा में तो लहराता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
कर श्रृंगार गगरी ले पनिहारी पनघट तो जाती होगी
खेतों में मौर नाचते कोयलिया तो गीत सुनाती होगी
सावन महीने में गड़रिया मेघ मल्हार तो गाता होगा
अब भी गांव के खेतो में अलगोजा तो बजता होगा।
वाह
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteलाजवाब
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