Wednesday, May 28, 2025

अब जाना चाहता हूँ

मैं अब 
सयानों की तरह 
चुप रहना चाहता हूँ। 

जीवन की 
धीरे-धीरे बुझती 
लो को देखना चाहता हूँ। 

अकेले 
आगे की यात्रा की 
तैयारी करना चाहता हूँ। 

सुख-दुःख
धैर्य और लालच सब 
साथ ले जाना चाहता हूँ। 

पतझड़ में 
झड़ते पत्तों की तरह 
उड़ जाना चाहता हूँ। 

शरीर छोड़ 
आत्मा के संग 
चले जाना चाहता हूँ। 

अनन्त में 
जहां झिलमिलते हैं तारे
वहाँ जाना चाहता हूँ।   




5 comments:

  1. वक्त के साथ कितना कुछ बदल जाता है जो बात कभी जानी ना थी वो भी पहचानने लगते है । यही जीवन प्रवाह है ।

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  2. सुंदर प्रस्तुति

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  3. चाहें या ना चाहें ये तो होना ही है ...जो होना ही है उसे स्वीकार कर चाह लेना वाकई बहुत बेहतर होता होगा ।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. आप सभी का स्वागत और आभार।

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