Tuesday, December 14, 2021

जवानी


बला है, कहर है, आफत है यह जवानी, 
चेहरे पर चार चाँद लगा देती है  जवानी,
पैगाम - ए - मोहब्बत की बहारें लाती है,
उम्मीदों की कलियां खिला देती जवानी। 

मुस्कराना और  झेंपना सिखाती जवानी,
इश्क़े - इजहार करना सिखाती  जवानी,
हौसलों  की उड़ाने  सफलता  चूमती है,
जब लक्ष्य पर निशाना साधती है जवानी। 

एक तो थोड़ी जिन्दगी फिर यह जवानी, 
देखते ही देखते फिसल जाती है जवानी, 
कातिल अदाएँ जब भी क़यामत ढाती है,
मर मिटने को तैयार हो जाती है जवानी। 

बहते दरिया सी अल्हड होती है जवानी,
मौजो की रवानी नादान होती है जवानी,
दिल  की हसरतें दिल में ही रह जाती है, 
बुढ़ापे का हाथ थमा चली जाती जवानी।





Friday, December 10, 2021

बचपन



मेरा मन तो आज भी 
उस बचपन को जीना चाहता है, 
माँ  के पल्लू के पीछे 
एक बार फिर से छिपना चाहता है। 

बेपरवाह हो कर 
भोलेपन से मिलना चाहता है, 
मासूमियत भरी मस्ती में 
फिर से लौट जाना चाहता है। 

चंचल चपल हो कर
फ़िक्र को धूंए में उड़ाना चाहता है,
बचपन के साथियों के संग 
फिर नादानियाँ करना चाहता है। 

मासूमियत भरा दिल लेकर
जी भर दौड़ लगाना चाहता है,
छुपे दोस्तों को ढूँढ कर 
फिर से खिलखिलाना चाहता है। 

बचपन की गलियों में 
एक बार फिर खेलना चाहता है
बरखा के बहते पानी में 
कागज की नाव चलना चाहता है। 

भोली सी शैतानियों संग 
मीठी मुस्कानों को जीना चाहता है,
बचपन की खुशियों भरे 
झोले को फिर से ढूंढना चाहता है। 














Wednesday, December 8, 2021

जवानी बीत गई

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

कजरारी आँखों पर 
चश्मा लग गया है अब,
काले घुँघराले बाल 
सफ़ेद होने लगे हैं अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

कानों से कम सुनाई देता 
दांत टूटने लगे हैं अब,
बढ़ते घुटनों के दर्द से 
नींद हराम होने लगी है अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

रोबिली मस्ती भरी चाल 
डगमगाने लगी  है अब, 
मुस्कराहट भरे गालों पर 
झुर्रियां पड़ने लगी है अब।  

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

धुरी पर रहा जीवन 
हाशिये पर आ गया है अब,
हमसफ़र बिछुड़ गए 
बीते पल याद आते हैं अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

नहीं बनाओ दूरियाँ 
नजदीकियाँ बनाओ अब, 
कब थम जाए जीवन सांसे
भरोसा नहीं है अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 







Wednesday, October 20, 2021

सबसूं प्यारो लागै, म्हाने म्हारो गांव ( राजस्थानी कविता )

भातो लेकर चाली गौरड़ी  
गीगो गोदी मांय, 
झाड़को तो करी मस्करी 
काँटो गड्ग्यो पांव,  
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 

जबर जमानो अबकी हुयो   
भरग्या कोठी ठांव,  
मेड़ी ऊपर बैठ्यो कागळो 
बोले कांव - कांव, 
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 

फौज स्यूं रिटायर बाबो 
बैठ्यो पोळी मांय, 
आया गया ने कोथ सुनावै 
दे मूंछ्या पर ताव, 
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 

टाबर खेळ लुकमींचणी
घर री बाखळ मांय, 
मोर-मोरनी छतरी ताणै 
बड़-पीपल री छांव, 
सबसूं प्यारो लागै 
म्हाने म्हारो गांव। 



Monday, September 27, 2021

टीका लगा कोरोना को दूर भगाना है

दीवाली पर उम्मीदों के पंख लगाना है, 
थके हुए  कदमों की पीड़ा को हरना है,  
आशा की किरणों को मुट्ठी में भरना है, 
हर पनीली आँखों  में स्वपन सजाना है, 
टीका  लगा कोरोना को दूर  भगाना है। 

हर घर खुशियों के अब दीप जलाना है,
सारे कष्टों को भूल अब जोश जगाना है,
निराशा के अन्धकार से बाहर आना है,
हर दिल में आशा की किरण जगाना है,
टीका  लगा कोरोना  को दूर भगाना है। 

चिंता और दुःखों से अब मुक्ति पाना है,
मिलने-मिलाने के दिन फिर से लाना हैं, 
बाधाओं की दीवारों को आज तोड़ना है, 
जीवन में बहारों को  फिर से सजाना है,
टीका  लगा  कोरोना  को दूर भगाना है। 


Saturday, September 25, 2021

मस्त रहो खाओ-पीओ मत करो तुम फ़िकर

मस्त रहो खाओ-पीओ मत करो तुम फ़िकर,
नाचते - गाते हुए पूरा करो जीवन का सफर,
कौन साथ लेकर आया कौन साथ ले जाएगा,
साथ तुम्हारे जाएगा वो भलाई का काम कर। 

स्वार्थ भरी सारी  दुनिया देखलो चाहे जिधर,
बेटा  भी नहीं  बात  करता पास में बैठ कर,
एक दिन चले जाओगे सभी कुछ छोड़ यहाँ,
सबकी झोली भर चलो अपने हाथों बाँट कर। 

जो संसार का नियंता उस प्रभु को कर नमन,
उसकी भृकुटि मात्र से होता यहाँ आवागमन,
कोई भी कर्म करो उससे नहीं छिपा सकोगे,
वह है सर्व काल द्रष्टा वह सभी का प्राण धन। 

चन्द्रमा क्यों मंगल ग्रह सबको ले जा साथ में ,
जिन्दगी का एक भी पल नहीं तुम्हारे हाथ में, 
ओस के कण की तरह यह जिंदगी है हमारी, 
अन्त में जाना नहीं है कुछ भी हमारे साथ में। 



Tuesday, September 21, 2021

तुम थी मेरी रजनीगंधा

स्पर्श तुम्हारा प्यारा होता  
मधु स्वर कानों में कहती,
मेरा  सिर  गोदी  में रहता 
बालों  को  तुम  सहलाती,
तुम  थी  मेरी  रजनीगंधा। 

भावों  में मैं डूबा  रहता 
मस्ती  सांसों  में   रहती, 
मेरे  मन  की  बातों  को 
नयनों  से  तुम पढ़ लेती,
तुम थी मेरी  रजनीगंधा। 

घर आँगन की थी शोभा 
नूपुर  सी  बजती  रहती,
तुम से मेल युगों का मेरा  
स्मृतियों  में  तुम  रहती,  
तुम थी मेरी  रजनीगंधा। 

ग्रीष्म में  शीतल छाया
घोर शीत  में गर्मी देती, 
महकाई जीवन की रातें
साँसों में  खुशबू भरती,
तुम थी मेरी रजनीगंधा।