Wednesday, December 8, 2021

जवानी बीत गई

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

कजरारी आँखों पर 
चश्मा लग गया है अब,
काले घुँघराले बाल 
सफ़ेद होने लगे हैं अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

कानों से कम सुनाई देता 
दांत टूटने लगे हैं अब,
बढ़ते घुटनों के दर्द से 
नींद हराम होने लगी है अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

रोबिली मस्ती भरी चाल 
डगमगाने लगी  है अब, 
मुस्कराहट भरे गालों पर 
झुर्रियां पड़ने लगी है अब।  

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

धुरी पर रहा जीवन 
हाशिये पर आ गया है अब,
हमसफ़र बिछुड़ गए 
बीते पल याद आते हैं अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 

नहीं बनाओ दूरियाँ 
नजदीकियाँ बनाओ अब, 
कब थम जाए जीवन सांसे
भरोसा नहीं है अब। 

जवानी बीत गई 
बुढ़ापा आ गया है अब। 







12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
    'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. धुरी पर रहा जीवन
      हाशिये पर आ गया है अब।
      सच है, बिल्कुल सौ प्रतिशत!--ब्रजेंद्रनाथ

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  2. नहीं बनाओ दूरियाँ
    नजदीकियाँ बनाओ अब,
    कब थम जाए जीवन सांसे
    भरोसा नहीं है अब।

    सच,कब थम जाएं सांसें पता नहीं... बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर 🙏

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    1. धन्यवाद कामिनी जी। आभार आपका।

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  3. समय अचंभित करता हर पल
    जीवन सशंकित रहता पल-पल
    उम्र धुरी है नियति चक्र की
    अनवरत,अविराम बहता कल-कल।
    -----
    सुंदर अभिव्यक्ति
    सादर।

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    1. धन्यवाद स्वेता जी। स्वागत आपका।

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति।

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  5. स्वागत आपका अनुराधा जी।

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  6. शाश्वत सा उद्बोधन ।
    हृदय स्पर्शी सृजन।

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