Monday, November 16, 2009

माँ और नारी



माँ,
आँखों में क्षमा
मन में वात्सल्य
हाथ देने हेतु उठा हुवा

नारी
आँखों में आलोचना
मन में कामना
हाथ लेने हेतु फैला हुआ

माँ
समर्पित-सात्विक जीवन
अल्पसंतोषी
इश्वर की सीधी-सादी रचना 

नारी
समर्पण की चाहत
संतुष्टी का अभाव
इश्वर की जटिल रचना

माँ
असमर्थ, पराजित, दुर्बल
पुत्र को भी बढ़ कर
आँचल में बैठाती है 

नारी
असमर्थ, पराजित
 दुर्बल पुरूष को
बांहों में नहीं भारती है। 



कोलकत्ता
१५ नवम्बर, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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