सियाळा में सी पङै जी ढोला
सूरज निकल्यो बादल में
पीळा पड़ग्या खेत भंवरजी
सरसों फूली खेतां में
डूंगर ऊपर मोर ठिठरग्या
पालो जमग्यो हांडी में
छोरा-छोरी सिंया मरग्या
सोपो पड्ग्यो सिंझ्या में
चिड़ी-कमेड़ी ठांठर मरती
जाकर घुसगी आळा में
बुड्ढा-बडेरा थर-थर कांपे
जाकर बङग्या गुदडा में
अमुवा री डाली पर बैठी
कोयल बोली बागा में
बेगा आवो बालम म्हारा
गौरी उडीके महलां में।
कोलकत्ता
२१ नवम्बर, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
कोलकत्ता
२१ नवम्बर, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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