एक कौवे ने
अपने पूर्वजो का
श्राद्ध कर्म करने का
मन बनाया
श्राद्ध कर्म करने का
मन बनाया
मंदिर वाले पेड़ के
पंडित कौवे को
श्राद्ध कर्म करने के लिए
बुलाया
श्राद्ध कर्म करने के लिए
बुलाया
विधि-विधानुसार
पंडित कौवे ने एक पिंड
पंडित कौवे ने एक पिंड
बनवाया और पीपल के पेड़
के नीचे रखवाया
एक बूढा
भिखारी उधर से निकला
भिखारी उधर से निकला
उसने पिंड को देखा
और खा लिया
और खा लिया
पेड़ से कोवा
चिल्लाया - श्राद्ध पूर्ण हुवा
चिल्लाया - श्राद्ध पूर्ण हुवा
अभ्यागत ने भोजन
ग्रहण कर लिया
ग्रहण कर लिया
सभी कौओं ने
आसमान की तरफ देखा
श्रद्धा से उनकी आँखों से
अश्रु छलक पड़े।
अश्रु छलक पड़े।
सुजानगढ़
14 मई, 2010
( यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
14 मई, 2010
( यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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