म्याऊँ-म्याऊँ बिल्ली करती
भों- भों कुत्ते करते हैं
चूं चूं करके चूहा करता
मुर्गा बाँग लगाता है
काँव-काँव करता हैं कौवा
चिड़िया चीं-चीं करती है
पैको-पैको मोर बोलता,
टिऊ-टिऊ तोता करता है
कुहू -कुहू कर कोयल बोले
गुटर गूँ कबूतर करता है
पिहू -पिहू कर बोले पपीहा
मेंढक टर्र- टर्र करता है
जंगल में हैं शेर दहाड़े
घर में गाय रंभाती हैं
ढेंचू- ढेंचू गदहे करते
घोड़े हिनहिनाते हैं
मच्छर गुनगुनाते देखो
मच्छर गुनगुनाते देखो
मक्खियाँ भिनभिनाती है
फूलोँ पर मंडराते भंवरे
कुदरत खेल दिखाती है।
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सुजानगढ़
१४ मई, २०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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