मई महीना आते ही
गर्मी जब बढ जाती है
नानी के घर जाने की
जल्दी हमें सताती है
जल्दी हमें सताती है
लम्बी छुट्टी होते ही हम
नानी के घर जाते हैं
नानी के संग चौपाटी में
भेल-पूरी हम खाते हैं
नानी दिन भर हम सबको
खेल अनेक खिलाती है
जूहू बीच पर पुचका खाने
साथ हमें ले जाती है
मामी मेरी प्यारी-प्यारी
देती गुडिया नई- नई
इसीलिए लगती हैं हमको
प्यारी-प्यारी मुंबई
छुट्टियां खत्म होते ही
वापिस घर आजाते है
अगली छुटी में आयेंगे
नानी को कह आते हैं।
सुजानगढ़
३१ मई, २०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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