धोरां री धरती रो मेवो
मीठो गटक मतीरो
हरी-हरी बेलां पर लागे
जाणै पन्ना जड़िया
धोरा मांई गुड-गुड ज्यावै
ज्यूँ अमरित रा घड़िया
फोड़ मतीरो खुपरी खावे,
लागे अमरित ज्यूँ मीठो
गरमी रा तपता मौसम में
ओ करे कालजो ठंडो
कुचर-कुचर ने खुपरी खावे
मिसरी ज्यूँ मीठो पाणी
भूख मिटावे -प्यास बुझावे
गंगा जल सो ठंडो पांणी।
सुजानगढ़
३ जून,२०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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